Saturday 9 May 2009

एक पाठक का प्रथम प्रयास

ओ सुंदरी तेरा रूप मानो
चाँद की शीतल सुनहरी शांत काया में कदाचित
मोतियों के वर्ण वाली ओस कोई झिलमिलाये ॥
तेरे सुगन्धित केसुओं से मादक मदुर मीठी मनोहर
महक मेरे मन को मीलों दूर से महका के जाए ॥
कितने सुहाने रात दिन थे जब तुम्हारे साथ था मैं
उन निराली वादियों में प्रति छन तुम्हारा हाथ थामे
पुष्प आभूशानो से श्रृंगार की शोभा बढाती
मृगनयनी तुम्हारे रूप का मैं पान करना चाहता था ॥
उस अनूठी रात्रि को जब तुम मेरे समीप थी
और मन तुम्हारा बस मेरा प्रस्ताव सुनना चाहता था
सीप की मानिंद तुम्हारे कर्ण के कुछ निकट आकर
चाहता था यह कहूं कितना तुम्हे मैं चाहता हूँ
फिर तुम्हारे गौर मुख के सम्मुख आ धीमे से कहूं
प्राण प्रिये तुमको प्राणों में बसाना चाहता हूँ ॥
अबके जब आएगा सावन बहेगी शीतल पवन
प्रेम की व्याकुल अधूरी आत्माएं दो मिलेंगी
देखती होगी धरा और साक्षी होगा गगन
बाहों के घेरे में तुमको बाँध कर सुन लो प्रिये
बाँध सारे तोड़ देगा इस बरस अपना मिलन

एक पाठक की तरफ़ से

10 comments:

  1. इन पंक्तियों को पढ़कर कुछ ऐसा एहसास हुआ मानों, मैं हसीन वादियों में पहुँच गया, लेकिन कुछ पंक्तियों ने उलझन में डाल दिया कि मैं उनका क्या मतलब निकालूँ................

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  2. सुन्दर रचना है..........स्वागत है आपका इस जगत में

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  3. pathneey rachna

    likhte rahiye...
    aapka swaagat hai

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति .

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  5. बहुत शानदार लिखा है। बस लिखती रहें। मेरे ब्लॉग पर जरूर आएं। उत्तराखंड तो सुंदर फूलों की घाटियों का इलाका है। उम्मीद है कि सुंदर विचारों से सामना होता रहेगा।

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  6. स्वागतम नवागुंतक

    चांद सितारे एक तरफ़
    आप हमारे एक तरफ़
    पूरी गज़ल के लिये........http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
    http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
    सस्नेह
    श्यामसखा‘श्याम

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  7. हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
    इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

    ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
    अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
    -(बकौल मूल शायर)


    कृपया अधूरे व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें।
    मेरा पता है:-
    www.samwaadghar.blogspot.com
    शुभकामनाओं सहित
    संजय ग्रोवर

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  8. aap sabhi ka bahut bahut dhanyavad.....

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