सपनो की महफिल में थे हम मस्त,एक आहट ने जगा दिया,
ख्वाबों का काफिला रुक यूँ गया ॥
जैसे हमारी दुनिया ही बदल गयी।
शाम की बदली छाई थी ,और अब सुबह की धूप खिल गयी .
झुरमुट की ओट में छिपा एक नन्हा फूल, मुस्कुरा के बोला -मैं खुशबू हूँ, मुझे महसूस कर मेरी तरह मुस्कुरा ,मेरी तरह जी
हम स्तब्ध से उसे एकटक निहारते रहे उसकी कोमलता को स्पर्श करना चाहा॥
फिर देखा शाम की बदली घिर आई है
हमारे आँगन में फिर सपनो की महफिल सजने लगी
वो फूल मुरझा गया
रहस्य ,रहस्य ही रह गया
क्यों जिया था ,क्यों मुरझाया ,क्यों था मुस्कुराया ?
वो मुरझा रहा था और सपने हमारी देहलीज पर जगमगा रहे थे
ठंडी हवा गुनगुना रही थी
सपनो की पालकी पर हम पसर गए
फिर सपनो की महफिल में हम मस्त हो गए
भूल कर उस फूल को हम फिर सो गए ।
Wednesday, 10 June 2009
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